Monday, February 4, 2008

वट vrich कि आत्म katha

यूगों युगों से यहीं खड़ा रहता हू
रवि कि तपिश और वरुण कि थाप सहता हूँ
जड़ और चेतन के बीच का इतिहास कहता हूँ
सौ साल पुराना में वट वृच आपकों
सदर प्रनाम कहता हूं.

मुझे याद नहीं कि मेरी नींव किसने रखी 'किसने मुझे बोया ,बस इतना याद है की एक बर्रे पूरे परिवार में मेरा जन्म हुआ था । घने जंगल के उच्चे पदों के बीच म्मधुर बचपन गुजरा .सुरम्य वातावरण ,सुंगंधित हवा के झोकों ने मेरे कोमल कोपलों को सहलाया था।
आनंद के दिन और मनमोहक रातें हुआ करती थी।
एक दिन मैंने देखा कि कुछ महिलाएं सजी हुई थालियाँ लेकर पदों के झुरमुट कि तरफ चली आ रहें हैं । में असमन्जस में था .यह क्या हु रह है? फिर एक महिला ने दिया जलाया । आग देख कर में टू भेयभित ही हो गया .मेरे बडे भैया ने फिर मुझे समझाया कीई यह महिलाएं हमारी पूजा करने आई हैं .उन लोगों ने मेरे साथ साथ मेरे भाई बहनो और मेरे दोस्तों कि भी पूजा की.कुंकी ऐसी मान्यता हैं की वन ,पेड़ पौधे देव तुल्य होतें हिन् .उनकी पूजा और रचा करनी चाहियें .पेड़ हमें अत्यंत बहुमूल्य चीजे प्रदान करतें हैं, जैसे फल ,फूल ,लकडी इत्यादी।
उन दिनों कि बात ही कुछ और थी.वन में हर्रे भरे जंगल और जंगल में अनेक तरह के पशू पश्ची उन्मुक्त विचरते थे .उन्हें किसी अकेतक का भय नही था .सबके लिए प्राप्त भोजन था .मेरी शाखाओं पर भी कई प्रकर के पंछियों का घरोंदा था .चिदियूं के चेह्चाहत से पुरा वन दिन भर गूंजता रहता था मनो किसी संगीत का निर्माण हु रह हैं ।
मानव जाती भी वनों का सम्मान और रचा में कोई क़सर नहीं छोडती। जंगल के महत्त्व से सबको अवगत करना अपना कर्तव्य मानती.एक बार टू में खुद जंगल में बससे गुरुकुल के गुरुजी कि बात सुनी थी .वह अपने शिस्यूं को बता रहे थे कि की कैसे जंगल हमारी सम्पदा हैं .कैसे जंगल बारिश के दिनों में पानी के भाव से भूमि के कटाव को रोकता हैं.कैसे पढ़ वायु कि शुद्ध करते हैं और जीवन वायू का निर्माण भी करते है।
फिर युग बदले समय ने करवट ली .जन्संक्यान बदने लगी टू लोगों ने जंगलों को कट कर घर बना शुरू कर दिए .अपनी इन्ही आखों से मैं अपने भी बन्धुओं कि निर्मम हत्या देखी है .आरी से अपनी मान का कलेजा कटते देखा है.आप सोच रहे होंगे कि में कैसे जीवेत रह गया?जिस चोव्धारी जी का घर मेरे पूर्वजो कि लाश पर बना उनके पोते को मुझ से प्यार हो गया इसलिए उसके निवेदन पर मुझे छोड़ दिया गया ,सही भी था आखिर आगन में एक पेड़ टू हों है चाहिऐ इथिहस का सचात्कर करवाने के लिए ।

और इस तरह सौ बरस बीत गए.इन बूढी आखों ने अपने नीचे मुग़ल बद्षा के कारिन्दों कि मुनादी होते देखी और देखी हिन्दुस्तानी हुकूमत पर ईस्ट इंडिया कंपनी कि जीत।
फुट डालों और राज करों।(
seshs अगली बार)